अवसाद
- Kriti Bordia

- Feb 11, 2021
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दस्तक देती एक आवाज़
सिरहाने मेरे,
हिचकिचाऊं, जूझुं, रोकूं
ना सुनती वह एक मेरी ।
ना रोने देती, ना सोने,
ना बोलने देती, ना सेहने
बढा़ देती बस
परेशानियों को मेरे ।
दस्तक देती एक आवाज़
सिरहाने मेरे..
मायूस कर देती, बद्-मिज़ाज भी,
खिलखिलाहट लूट लेती, और उम्मीद भी,
कस लेती मुझे बस
शोर में उसके ।
दस्तक देती एक आवाज़
सिरहाने मेरे..
विचारों की भीड़ में, उस आवाज़ की जकड़ में,
आहटों के डर में , कैद एक कोने में,
बातें करती वह मुझसे
जैसे ज़ोर उसका हो मुझपे ।
दस्तक देती एक आवाज़
सिरहाने मेरे..
वह चीखती, हक़ जताती,
मैं चिल्लाती, मैं लड़ती
बैर बढा़ती खुदसे बस
छीनती हंसी लबों से मेरे
दस्तक देती एक आवाज़
सिरहाने मेरे..


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