आधी अधुरी कहानी
- Kriti Bordia

- Apr 26, 2018
- 1 min read
Updated: Mar 20, 2023
तेरी ओर चली थी मैं,
मन में कई सवाल लिये
वक़्त का तकाज़ा इतना था,
चन लम्हों में तुझसे जुड़ गई मैं ।
तु दूर हो यह अभी गवारा नहीं,
मगर इस अस्पष्टता की नैया में,
तुझे अपने पास आने देना
मुझे कतई मंज़ुर नहीं ॥
कदम बढा़ये थे मैंने भी कई ज़्यादा,
पर तेरे और मेरे नज़रिये में फ़र्क राहा,
जिस गति से तुने चलना चाहा,
उस गति से चलना मेरे बस का था नहीं ।
तेरी पसंद तो बन गई,
पर तुझे अपनाने में अरसा लग सकता था,
वो आकुलता तेरे मन में घर कर गई
और इतना वक़्त कुदरत ने मुझे दिया नहीं ॥
अदेंशा दिया था मैंने
एक होने वाली तकलीफ़ का,
कोशिश भी की थी
इन अश्क को रोकने की,
तुने आस दिलायी उन्हें सेहने की
लेकिन मुकम्मल तेरे अल्फ़ाज़ हुए नहीं ॥
गुज़र रहें हैं अब उस दर्द से हम,
जिससे हिफ़ाज़त करनी थी मुझे हमारी,
शायाद समझाने में कसर रेह गई,
और तेरी समझ से यह बात परे रेह गई ॥
अब जाकर उठी एक लहर मन में तेरे,
जो काश उठ जाती तेरी आदत लगने से पहले ।
मगर ना मैंने तब सवाल किया था ना मैं अब करुंगी,
खैर है, यह गुफ़्तगू अभी हो गई,
गिरती हुई दीवार फ़िर खड़ी हो गई ॥



Comments