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Kriti Bordia
Sep 5, 2020
सामाजिक दूरी
आस-पडो़स से बिछड़े दौड़ में, ज़िन्दगी की, लोगों को भुले, जी रहे मानों अनजान हो जैसे, फ़िर आज, दिल युँ बेचैन क्युँ है ? कुदरत ने दिये, दो पल...

Kriti Bordia
Dec 18, 2019
माँ, तुम क्यूं नहीं हो ?
हम राही थी तुम मेरी, फ़िर बे राह-O-रस्ता मुझे, तुम क्यूं कर गयी हो ? फज्र थी तुम मेरी फ़िर धुँधली साँझ तुम क्यूं बन गयी हो ? आखों का...

Kriti Bordia
Oct 23, 2018
जो है, जो नहीं
ना बचपन की मस्ती, ना जवानी का जोश, ना उम्मीद की किरन, ना जीने का मकसद, ना दिलचस्पी की भनक, ना रूह का एहसास, ना गहराई की समझ, ना सच का...

Kriti Bordia
Apr 26, 2018
आधी अधुरी कहानी
तेरी ओर चली थी मैं, मन में कई सवाल लिये वक़्त का तकाज़ा इतना था, चन लम्हों में तुझसे जुड़ गई मैं । तु दूर हो यह अभी गवारा नहीं, मगर इस...
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