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माँ, तुम क्यूं नहीं हो ?

  • Writer: Kriti Bordia
    Kriti Bordia
  • Dec 18, 2019
  • 2 min read

हम राही थी तुम मेरी,

फ़िर बे राह-O-रस्ता मुझे, ‍तुम क्यूं कर गयी हो ?

फज्र थी तुम मेरी

फ़िर धुँधली साँझ ‍तुम क्यूं बन गयी हो ?


आखों का तुम्हारी मैं तारा थी

अब तुम खुद एक तारा बन गयी हो

सब से ज़्यादा टिमटिमाती होंगी

तभी चमकाती यह गगन हो ।


इन झिलमिल सितारों के बीच,

मैं तुम्हें ढूँढती हूँ ।

मैं ना दिखूं तो भी,

क्या तुम मुझे ढूँढती हो ?


तुम्हारी दी गयी सीख ने,

मुझे तुमसे है बांध रखा -

इंसानियत​ ही सब से बडी़ भाषा

बदलाव ही जीवन​ की परिभाषा

‍सादगी में झलकती सुंदरता

बदलते रिश्तों में कभी ना उलझना

शख्सियत अपनी खुद बनाना

काबिलियत पर अपनी कभी ना शक करना

यह तुम समझाती आयी हो

इन सब की तुम क्या खूब मिसाल बनी हो

लेकिन तुम्हारी तालीम-O-तरबियत पर कैसे अमल करूँ

इस सोच में व्याकुल मुझे, तुम क्यूं कर गयी हो ?


कपडे़ नहीं हैं मम्मी, क्या पहनुं

यह शिकायत सुनने, तुम क्यूं नहीं आती हो ?

आगे बढ़ने के लिये,

पिछे मुझे, तुम क्यूं छोड़ गई हो ?


नज़्म में, मम्मी-मम्मी करती हूँ,

पर जवाब तुम क्यूं नहीं देती हो ?

इधर ही हूँ मैं,

तुम क्यूं चली गई हो ?


तुम्हारे कपडे़ गहेने मैं पहनुं,

इस ग़म में मुझे, तुम क्यूं डाल गयी हो ?

सिर्फ़ एहसास पे तुम्हारे जीने के लिये,

मजबूर मुझे, तुम क्यूं कर गयी हो ?


सजना था मुझे, सजके तुम क्यूं जा चुकी हो ?

रुखसत होना था मुझे, विदा तुम क्यूं हो चुकी हो ?

डोली उठनी थी मेरी, जनाज़े में तुम क्यूं जा चुकी हो ?

फ़ेरों की लौ लगनी थी, अंत की लौ में तुम क्यूं जल चुकी हो ?


ज़िम्मेदारियों की यह लंबी फ़ेहरिस्त,

मेरे कंधों पे तुम क्यूं डाल​ गयी हो ?

मैं तो खुद नाज़ुक सी एक कली हूँ,

फ़िर परिवार की अटूट कडी़ मुझे, तुम कैसे बना गयी हो ?


जज़्बात के इस गहेरे समुंदर में,

अकेला डूबता हुआ मुझे, तुम क्यूं छोड़ गयी हो ?

शौक़ के मुख़ालिफ, वक़्त के पहले

मुझे तुम, तुम बन ने की कोशिश में क्यूं छोड़ गई हो ?


अपनी खूबसूरत यादों के साथ,

बिंदी का तोहफ़ा दे गई हो ।

उसके श्रृंगार के साथ,

तुमसा लगने की आशा में मुझे, तुम क्यूं छोड़ गई हो ?


ना सही ना ग़लत, ना मुमकिन ना नामुमकिन,

बस​ झटके में बड़ा मुझे, तुम क्यूं कर गई हो ?

सपनों का तारा भी नहीं टूटा और

बेटी से औरत मुझे, तुम क्यूं बना गई हो ?

आशिक़

यकी़ं सिर्फ़ ज्ञान और फ़लसफ़े में मुझ को किया इश्क़-ए-मजाज़ी से तुने आशना मुझ को बे-मुद्दआ होना था या खु़दा मुझ को किया इहया उससे...

 
 
 

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