भेद भाव
- Kriti Bordia

- Sep 2, 2020
- 1 min read
गरम-ओ-सर्द सब मेहसूस करते हो
तन को सब ढकते हो
दर्द-ए-ग़म में सब रोते हो,
सुख-दुख के पेहलु सब जानते हो
मग़र फ़िर भी,
भेद से प्यार करते हो,
और भाव से तनाव
ऐसी अज्ञानता को जब शान समझते हो
तो अभिमान क्यूँ करते हो ?
भेद भाव में बंटते हो,
फ़िर भी मग़रूर खडे़ हो
धरम सभी का एक जब सिखाते हो
तो इंसान के टुकड़े क्यूँ करते हो ?
जाति से सम्मान देते हो,
सेवक को जागीर मानते हो
पैसों से जब जहाँ तोलते हुए
तो रूहानियत की शिक्षा क्यूँ देते हो ?
भिन्न-भिन्न भाँति में बंटो
ऐसे जानवर या परिंदे नहीं हो
जब ज़रा अंदर झाँको
तो पूछो, कि इनसान क्यूँ हो ?
ऊँच-नीच की वकालत करते हो,
और पिछ्डे़ हुऐ रहते हो,
जब एकता की प्रगाढ़ नींव रखते हो
तो धर्म के नारे क्यूँ लगाते हो ?
प्राचीन संस्कृति जाने जाते हो
विकासशील देश कहलाते हो
जब 5 trillion $ economy चाहते हो
तो ज़ाति से vote-bank क्यूँ चलाते हो ?



Comments