सामाजिक दूरी
- Kriti Bordia

- Sep 5, 2020
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आस-पडो़स से बिछड़े
दौड़ में, ज़िन्दगी की, लोगों को भुले,
जी रहे मानों अनजान हो जैसे,
फ़िर आज, दिल युँ बेचैन क्युँ है ?
कुदरत ने दिये, दो पल सुकून के
पुरानी करीबीयां, भुली-बिसरी यादें,
इन्हें दुबारा से जी लेने के,
फ़िर आज, मन युँ बेयकीन क्युँ है ?
चलते, भागते, ना रुकते
कीमती रिश्तों को बस खोजते खोते,
एक आदत सी बना ली इस्की हम ने,
फ़िर आज, खुदसे नाखुश क्युँ हैं ?
द्वंद के शिकार से बेख़बर
बस अकेले होते जा रहे हैं,
पुरे जग की है खब़र,
फ़िर आज, खुदसे बेखब़र क्युँ है ?



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